बेटियां घर की रोशन है

हर रूप से रोशन


बेटियां घर की रोशन है

 दिवाली के दीयों की टिमटिमाती मुस्कान यह सहज संदेश देती है कि जीवन में हर परिस्थिति का सामना हंसते - मुस्कुराते हुए करने वाली घर - परिवार की बहू या पली जिस सम्मान की अधिकारी है , वो उसे देना ही चाहिए । ताकि उनके मन में भी आशाओं की लौ सदैव प्रकाशित रहे । इतना ही नहीं , अपनों से ऐसा खुशनुमा व्यवहार पाकर उनका गरिमामयी व्यक्तित्व और पोषित हो , सुशोभित हो । हमारे घरों में एक पली की छवि और व्यक्तित्व जितना सौम्य होता और दिखता है , उसका संघर्ष और सोच उतनी ही सशक्त होती है । जिसके बल पर वह गृहलक्ष्मी के रूप में घर को हर परिस्थिति में थामे रहती है और जरूरत पड़ने पर अपने जीवन साथी और अपने परिवारजनों को हौसले का उजास देती है ।


 बिटिया जो संजोती है
उस दीये की ज्योति - धार में
 बह जाते हैं जीवन के
 दुःख - दर्द 
और आंगन को आलोकित
 कर देती है उसकी
 टिमटिमाती मुस्कुराहट


बेटियां सबकी साझी होती हैं । हमारे मन में बेटियों को लेकर बसा भाव सामाजिक सरोकार की परंपरागत सीख है । उनके नन्हे हाथों से रोशन दीये पूरे परिवार में टिमटिमाती मुस्कराहट बिखेर देते हैं । दिवाली के जगमग जलते दीपों के साथ हमारी मानवीय सोच भी ठीक उसी तरह से उजास पाती है , जैसे बेटियों की खिलखिलाहट से आंगन में रंगोली के रंग खिलते हैं । कितनी ही परंपराएं हैं , जो दिवाली के त्योहार पर हमें अपने ही नहीं , औरों के जीवन में भी रोशनी भरने की सीख देती हैं । जैसे दीपदान का रिवाज सिखाता है कि किसी भी देहरी पर अंधियारे का वास न हो । इस रिवाज के मुताबिक , महिलाएं अपने आस - पड़ोस के घरों की देहरी पर भी दीप प्रकाशित करती हैं । दीपदान का रिवाज एक परिवार से दूसरे परिवार में चलता है । इस परंपरा का सीधा - सा अर्थ उजियारा बांटने से है । हर घर के द्वार को रोशन रखने से है , जो कि एक साझा सरोकार है । आज जिस वातावरण में हम रह रहे हैं , वहां तो मानवीय मूल्यों के दीप बझे जा रहे हैं । हर ओर भय और असुरक्षा का माहौल बना हुआ है । ऐसे में आवश्यकता है स्नेह भरी सोच की । बेटियां सदा से इसी स्नेह भरी सोच को संबल देती आई हैं । दिवाली पर्व के दीये के समान ही हम भी समाज , परिवार और अपने देश के लिए ज्योतिपुंज बनें , स्वयं जलें , प्रकाशमान और चेतन रहें । साथ ही अपने से जुड़े लोगों को भी उस उजास के सकारात्मक पहलू से जोड़ें । हमारी इसी चेतना को बल देती है बेटियों की मुस्कुराहटें । समाज में उम्मीदों से सजी ज्ञान , विवेक और मित्रता के दिव्य प्रकाश की लौ सदैव जलती रहे । दिवाली के प्रकाशमयी उत्सव से सामाजिक , सांस्कृतिक और धार्मिक हर तरह के सरोकार जुड़े हैं , जो जीवन में आपसी स्नेह के साथ - साथ सदाचार का उजियारा भी लाते हैं । बिटिया हाथों संजोया दीपक इसी उजियारे को हर ओर बांटता है बिना किसी भेदभाव के । ईश्वर करे , आशाओं और आस्थाओं का प्रकाश बिखेरता यह पावन पर्व हमें अपने सामाजिक और पारिवारिक सरोकारों से हमेशा जोड़े रखे ।

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